देश में बेरोजगारी की बढ़ती समस्या पर अमित शाह ने तर्क दिया कि, 'बेरोजगार होने से बेहतर है, पकौड़े बेचना'. अमित शाह के तर्क का मतलब यह हुआ कि, पकौड़े या उस जैसी नाश्ते की दूसरी चीजें बेचने वाले बेरोजगार लोगों को खुद को बेहद भाग्यशाली समझना चाहिए. आखिर पकौड़ा कौन बेचता है? फिर भी गहराई से सोचा जाए तो, अमित शाह के तर्क को चुटकी भर नमक से ज्यादा तवज्जो नहीं दी जानी चाहिए. यानी हमें उनके इस बयान को विस्तृत रूप के बजाए लघु और तात्कालिक स्तर पर देखना होगा. पकौड़े बेचना शायद ही किसी की पसंद या करियर विकल्प हो. आमतौर पर पकौड़े बेचने जैसे व्यवसाय का फैसला वह इंसान करता है, जिसके पास अन्य विकल्पों का अभाव होता है. भूख और बेरोजगारी जैसी चुनौतियों के सामने अपने अस्तित्व को बनाए रखने की मजबूरी में ही लोग ऐसा रोजगार चुनते हैं. मैं शर्त लगा सकता हूं कि भारत में कोई भी ऐसा इंसान नहीं होगा, जो गलियों में, सड़क पर, टीवी स्टूडियो के बाहर और शराब की दुकानों के नजदीक पकौड़े बेचने का सपना देखता होगा. इसलिए, अगर अमित शाह और उनसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपनी सरकार की कामयाबी की दास्तान के तौर